आपने कभी दफ़्तर से मिलने वाला पेन चुराया है? दफ़्तर की कैंटीन में खाते हुए आप वहां का चम्मच घर ले आए हैं?
अपने निजी दस्तावेज़ों के प्रिंटआउट ऑफ़िस के प्रिंटर से निकाले हैं? ऑफ़िस से बच्चों की ड्राइंग के प्रिंट निकाले हैं? उनके लिए काग़ज़ लेकर गए हैं?
कई नौकरीपेशा लोगों का इन सवालों का जवाब 'हां' में होगा.
नौकरी करने वाले अक्सर ऐसी छोटी-मोटी 'चोरियां' करते हैं. हाल ही में ब्रिटेन में पेपरमेट नाम की कंपनी ने जब नया पेन लॉन्च किया तो एक सर्वे किया.
इस सर्वे में शामिल सभी लोगों ने कहा कि उन्होंने ऑफ़िस का पेन चुराया है! ऐसे ही दूसरे रिसर्च बताते हैं कि क़रीब 75 प्रतिशत नौकरीपेशा लोगों ने दफ़्तर से ऐसा छोटा-मोटा सामान चुराया.
GETTY IMAGESअरबों का नुकसान
इन मामूली चोरियों से नुक़सान बहुत बड़ा होता है. मोटे अंदाज़े के मुताबिक़ ऐसी छोटी-मोटी चोरियों से अरबों डॉलर का सालाना नुक़सान होता है. इन चोरियों से कंपनियों के दफ़्तर का सामान 35 फ़ीसद तक कम हो जाता है. ये कई कंपनियों के सालाना कारोबार का 1.4 फ़ीसद तक होता है.
तो, अगर हमारा ऐसा बर्ताव अर्थव्यवस्था और कंपनी के लिए इतना घाटे का सौदा है, फिर भी हम ऐसी चोरियां क्यों करते हैं?
इस सवाल का जवाब मनोविज्ञान में छिपा है.
हम जब नौकरी की शुरुआत करते हैं, तो कंपनी या आप को रोज़गार देने वाले लोग आपसे कुछ वादे करते हैं. अक्सर ये ऐसी बातें होती हैं, जो नौकरी के कॉन्ट्रैक्ट का हिस्सा नहीं होती हैं.
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जैसे काम के घंटे तय नहीं होंगे. काम का माहौल अच्छा होगा. दोस्ताना रहेगा. आप सुविधा के हिसाब से काम पर आ सकते हैं. ऐसे अनकहे वादे आप के अंदर उम्मीद जगाते हैं. जानकार इन्हें मनोवैज्ञानिक कॉन्ट्रैक्ट कहते हैं.
जब तक कंपनी अपने इन अनकहे वादों को पूरा करती रहती है. तब तक नौकरी करने वाले के लिए भी सब कुछ ठीक रहता है. नौकरी करने वाले भी कंपनी के प्रति वफ़ादार बने रहते हैं.
पर, मुश्किल ये है कि शायद ही ऐसा होता हो. वक़्त बीतते ही कंपनी और कर्मचारी एक-दूसरे से बेज़ार होने लगते हैं.
GETTY IMAGESवादे टूटते हैं
ज़्यादातर कर्मचारी ये मानते हैं कि कंपनी ने उनसे किया हुआ अलिखित करार तोड़ा है. काम के जिस माहौल को देने का वादा था, वैसा माहौल नहीं है.
काम के घंटों का दबाव है. छुट्टियां नहीं मिलतीं. क़रीब 55 फ़ीसद नौकरीपेशा लोगों को शिकायत है कि कंपनियों ने उनसे किए वादे पूरे नहीं किए और ऐसा नौकरी के पहले दो सालों के भीतर होता है. वहीं 65 फ़ीसद तो ये कहते हैं कि नौकरी के पहले ही साल में उनकी उम्मीदें टूट गई थीं.
कुछ हालिया सर्वे कहते हैं कि कई नौकरीपेशा लोग तो रोज़ाना या हफ़्तावार वादे टूटने की शिकायतें करते हैं.
अब जब कंपनी ऐसा करती है, तो कर्मचारी ने भी जो अनकहा वादा किया होता है, वो तोड़ने लगते हैं. अच्छे बर्ताव, छुट्टी ज़रूरी होने पर ही लेना और दफ़्तर के सामान का उचित रख-रखाव करने जैसे अनकहे वादे कर्मचारी भी तोड़ने लगते हैं.
ALAMYकर्मचारियों की तसल्ली
मज़े की बात ये है कि न कंपनी को इस बात का एहसास होता है कि उसने कोई वादा तोड़ा, न ही कर्मचारी ये महसूस करता है. नतीजा ये कि कंपनी को भी लगता है कि जो बर्ताव वो कर्मचारी से कर रही है, वो ठीक है. वहीं कर्मचारी भी बदले में ऐसी छोटी-मोटी चोरियां करके अपनी तसल्ली करने लगते हैं.
अक्सर होता ये है कि कंपनियां अपने वादे से मुकर जाती हैं. उन्हें महसूस भी नहीं होता कि कर्मचारी से उन्होंने ये छल किया है. अब जब महसूस नहीं होता, तो फिर उसका हल निकालने का सवाल भी नहीं पैदा होता.
आपने गलत किया, तो क्या हम बदला भी न लें?
नौकरी करने वाले लोग ये सोचते हैं कि जब कंपनी ने उनकी उम्मीदें तोड़ी, तो वो भी इस बात का हक़ रखते हैं कि अच्छे कर्मचारी की ज़िम्मेदारी निभाने से बचें.
GETTY IMAGESबदले की भावना का पनपना
कंपनी से नाख़ुश कर्मचारी अक्सर नेगेटिव ख़यालात के शिकार हो जाते हैं. वो ग़ुस्सा करते हैं. खीझते हैं. भड़क उठते हैं. फिर वो बदले की भावना से भर जाते हैं.
रिसर्च कहते हैं कि ऐसी भावना उन कर्मचारियों में ज़्यादा आती है, जो अच्छा काम करते हैं. अगर वो ये महसूस करते हैं कि कंपनी ने उनके साथ इंसाफ़ नहीं किया. तरक़्क़ी नहीं दी. छुट्टी नहीं दी. तो फिर वो बदले के मूड में आ जाते हैं. क्योंकि कंपनी से बदला लेकर उन्हें अच्छा महसूस होता है.
आम तौर पर लोग कंपनी को नुक़सान पहुंचाकर फौरी ख़ुशी तो हासिल कर लेते हैं. मगर ऐसी चोरियां करने के बाद उन्हें पछतावा भी होता है.
सवाल ये उठता है कि फिर कर्मचारी को क्या करना चाहिए?
मनोवैज्ञानिक इसके लिए BRAIN इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं. BRAIN यानी Benefits, Risks, Alternatives, Information and Nothing.
जब भी आप को ये महसूस होता है कि कंपनी ने आप से छल किया है, तो आप पहले शांत दिमाग़ से ये सोचें कि बदला लेंगे, तो आप को इसका क्या फ़ायदा होगा.
दफ़्तर में चोरी के जोखिम का अंदाज़ा भी लगा लीजिए. हो सकता है कि ऑफ़िस में चोरी से आप कुछ देर के लिए बेहतर महसूस करें. मगर ये ख़ुशी लंबे वक़्त तक नहीं टिकती.
अब जब जोखिम भी है और ख़ुशी स्थायी भी नहीं, तो फिर आप को ऑफ़िस में चोरी के विकल्पों पर ग़ौर करना चाहिए.
अक्सर कंपनियों को पता ही नहीं होता कि कर्मचारी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. उन्हें एहसास ही नहीं होता कि अच्छे माहौल का वादा उन्होंने तोड़ दिया है, तरक़्क़ी का कौल नहीं निभाया है.
GETTY IMAGESतो क्या है विकल्प?
तो, आप के पास ये विकल्प है कि आप कंपनी को उसकी ग़लती का एहसास कराएं. बताएं कि आप छला हुआ महसूस कर रहे हैं. इसकी वजह क्या है. रिसर्च बताते हैं कि आम तौर पर कंपनियां मान लेती हैं कि उनसे ग़लती हुई है.
इसकी संभावना 52 से 66 फ़ीसद तक होती है. वो कर्मचारी से इस ग़लती के लिए माफ़ी मांगती हैं और इसकी भरपाई की कोशिश भी करती हैं.
लेकिन, कंपनी से वादे तोड़ने की शिकायत करने से पहले आप सारी जानकारी जुटा लें. ये देख लें कि जो शिकायत है आप की, वो कितनी वाजिब है? क्या आप के साथियों ने भी वैसा ही महसूस किया, जैसा आप महसूस कर रहे हैं? क्या आप के साथ नौकरी में ऐसा पहली बार हुआ है?
आप इन सवालों के जवाब पुख़्ता तौर पर तैयार कर लीजिए. आप के पास जितनी जानकारी होगी, उतनी ही बेहतर आपकी बात होगी.
अगर आप कंपनी के सामने ये साबित कर देते हैं कि आप के साथ हुआ वादा टूटा. और ऐसा जान बूझकर हुआ. कई बार हुआ. तो, इस बात की पूरी उम्मीद है कि कंपनी माफ़ी मांग कर अपनी गलती सुधारेगी. क्यों कि इस तरह से कंपनी को ये एहसास कराया जाता है कि हालात उसी के क़ाबू में हैं.
अगर आप अपने साथ दूसरे कर्मचारियों को भी शिकायत में जोड़ लेते हैं, तो बात और भी आपके हक़ में जाएगी
GETTY IMAGESख़ुद से करें सवाल
जो आख़िरी सवाल आप को ख़ुद से करना चाहिए, वो ये है कि क्या आप को वाक़ई ऐसी कोशिश करने की, ऐसी शिकायत करने की ज़रूरत है? इसके फ़ायदे कितने हैं?
कई बार कुछ न करना भी काफ़ी कारगर क़दम होता है. मतलब ये कि आप हर बात पर भागे-भागे जाकर एचआर डिपार्टमेंट में शिकायत करें, उससे अच्छा है कि सही वक़्त का इंतज़ार करें. हां, हम ये नहीं कर रहे कि आप नाइंसाफ़ी बर्दाश्त करते रहें.
अच्छा ये होगा कि आप साफ़ तौर से अपने ज़हन में समझ लें कि कंपनी के कौन से वादे आप के लिए बेहद ज़रूरी हैं और किन पर अमल न होने से आप को ज़्यादा फ़र्क़ नहीं पड़ता.
सारा हिसाब-किताब लगाकर ये देख लीजिए कि कंपनी में छोटी-मोटी चोरियां करना सही रहेगा. ख़ामोश रहना ठीक होगा. या फिर, अपनी शिकायत करना.
याद रखिए फ़ैसला करने में BRAIN ही आप का मददगार होगा.
- bbc
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